मेरा जनà¥à¤® 11 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 1928 को जनपद सोनà¤à¤¦à¥à¤° के धंधरौल बाॅध के समीप के छोटे से गांव अइलकर में हà¥à¤† था,मेरे दादा यशकायी गोकà¥à¤² सिंह व मेरे यशकायी पिता राधो सिंह शिकà¥à¤·à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ बहà¥à¤¤ सजग थे। मेरे पिताजी आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ चिकितà¥à¤¸à¤¾ के जाने माने वैदà¥à¤¯ थे। मै अपने पिता का अकेला पà¥à¤¼à¤¤à¥à¤° था बावजà¥à¤¦ इसके जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¥‡ शिकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ नहीं कर सका कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ का सà¥à¤•ूल गाॅव से काफी दूर था और संसाधन की कमी थी। 1971 में मैं अपनी गà¥à¤°à¤¾à¤® सà¤à¤¾ का गà¥à¤°à¤¾à¤® पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ निरà¥à¤µà¤¾à¤šà¤¿à¤¤ हà¥à¤†,और अपने गाॅव में अपने निजी संसाधनों से पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤®à¤°à¥€ विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ खोला जो अब परिषदीय विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के रà¥à¤ª में जू0 हाईसà¥à¤•ूल हो गया है। सदैव मेरी अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾ उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ की तरफ रहीं कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि उचà¥à¤š शिकà¥à¤·à¤¾ ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को पूरà¥à¤£ अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। मेरे इस सोच को मेरे सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ ने असली रà¥à¤ª पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤¶à¥€ अशोक महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करके दिये है। इस महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ आज शिशॠअवसà¥à¤¥à¤¾ में है लेकिन à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में यह महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ मील का पतà¥à¤¥à¤° साबित होगा। यह मेरा विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ और महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के लिये मेरी मंगल कामना है।