सम्राट अशोक न केवल भारतीय इतिहास के अपितू विश्व इतिहास के महानतम सम्राटो में से एक हैं। वे एक महान विजेता,कुशल प्रशासक एवं सफल राजनीतिक नेता थे।चाहे जिस दृष्टि से भी उनकी उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाय,वह सर्वथा योग्य सिद्ध होता है। उनमें चन्द्रगुप्त मोर्य जैसी शक्ति,समुद्रगुप्त जैसी बहुमुखी प्रतिभा तथा अकबर जैसी सहिष्णुता थी। उनके शासनकाल में भारतवर्ष ने अभूतपूर्व राजनैतिक एकता एवं स्थायित्व का साक्षात्कार किया था। वह एक प्रजापालक सम्राट थे। राजत्व सम्बन्धी उनकी धारणा पितृपरक थी।उन्होने अपने छठें शिलालेख में अपने विचार इन शब्दों में व्यक्त किये हैं “सर्वलोक हित मेरा कर्तव्य है,सर्वलोकहित से बढकर कोई दूसरा कर्म नहीं है, मै जो कुछ पराक्रम करता हूॅ वह इसलिये कि भूतों के ऋण से मुक्त होऊ”सम्राट अशोक के पास असीम साधन व शक्ति थी और यदि वे चाहते तो उसे विश्व विजय के कार्य में लगा सकते थे परन्तु उनका कोमल ह्नदय मानव जाति के कल्याण के लिये द्रवित हो उठा और उन्होने शक्ति की पराकाष्ठा पर पहुॅच कर विजय कार्यो से पूर्णतया मुख मोड़ लिये। यह अपने आप में एक आश्चर्यजनक घटना है जो विश्व इतिहास में अपनी सानी नही रखती,उन्होने बौद्ध धर्म के उपासक स्वरुप को ग्रहण कर उसके प्रचार प्रसार में अपने विशाल साम्राज्य के सभी साधनों को लगा दिये लेकिन जनहित के कार्यो की भी उपेक्षा नही होने दिये। इस प्रचार कार्य के फलस्वरुप बौद्ध धर्म जो तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व में मगध राज्य के इर्द-गिर्द ही फैला था,न केवल सम्पूर्ण भारत वर्ष एवं लंका में विस्तृत हुआ अपितू एशिया, पूर्वी यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका तक फैल गया।इस प्रकार प्रियदर्शी अशोक ने अपने अदम्य साहस एवं उत्साह से एक स्थानीय धर्म को विश्वव्यापी धर्म बना दिया परन्तु इस धर्म के प्रति उनके अदम्य उत्साह ने उन्हे अन्य धर्मो के प्रति क्रुर अथवा असहिष्णु नही बनाया। उन्होने बौद्ध धर्म को कल्याण का अपना संदेश दूर दूर तक फैलाये। अन्तर्राष्ट्रीय मामलो मेंवे शान्ति एवं सहिष्णुता के पुजारी थे।अशोक ने ही विश्व को जीओ और जीने दो तथा राजनीतिक ंिहंसा धर्म विरुद्ध है का पाठ पढाये। एच0जी0वेल्स प्रसिद्ध इतिहासकार ने लिखा है “इतिहास के स्तम्भो को भरने वाले राजाओं, सम्राटों, धर्माधिकारीयों, सन्त-महात्माओं आदि के बीच अशोक का नाम प्रकाशमान है। और आकाश में एकांकी तारे की तरह चमकता है। वोल्गा से जापान तक आज भी उनके नाम का सम्मान किया जाता है“। इस प्रकार विश्व इतिहास में प्रियदर्शी अशोक का स्थान सर्वथा अद्वितीय है। सही अर्थो में वे प्रथम राष्टीय शासक थे।जब हम देखते है कि आज भी विश्व के देश हथियारों की होड़ रोकने तथा युद्ध की विभिषिका को टालने के लिये सतत प्रसत्नशील रहने के बावजूद सफल नही हो पा रहे है तथा मानवता के लिये परमाणु युद्ध का गम्भीर संकट बना हुआ है, तब अशोक के विचारों एवं कार्यो की महत्ता स्वयमेव स्पष्ट हो जाती है। अशोक के उदात्त आदर्श विश्व शान्ति की स्थापना के लिये आज भी हमारा मार्गदर्शन करते है।स्वतंत्र भारत ने सम्राट अशोक महान की उमरकीर्ति सारनाथ अशोक स्तम्भ के सिंहशीर्ष को अपना राजचिन्ह के रुप में ग्रहण कर मानवता के इस महान पुजारी के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धाजंलि अर्पित की है।
ऐसे कालजयी महापुरुष से प्रभावित व प्रेरित होकर महाविधालय प्रबन्ध समिति ने प्रियदर्शी अशोक के नाम पर प्रियदर्शी अशोक महाविधालय की स्थापना किया है।
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